Mahatma Ghandhi Essay in Hindi: महात्मा गांधी का जीवन परिचय कैसे लिखें? आइए जानते है

Mahatma Gandhi essay in hindi: महात्मा गांधी भारत के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी में से एक थे। इस आर्टिकल में महात्मा गांधी जी के जीवन परिचय को विस्तार से बताया गया है। उन्होंने अपनी शिक्षा कहां प्राप्त की और प्रारंभिक जीवन कैसा रहा, भारत को आजादी दिलाने मे क्या योगदान रहा उन्होंने कौन कौन से आन्दोलन किए। इन सभी पर विस्तार से बताया गया है।

महात्मा गांधी का जीवन परिचय: महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 मे गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करम चंद गांधी है उनके पिताजी का नाम करमचंद गांधी था और माता जी का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी का विवाह सन 1883 मे मात्र 13 वर्ष की उम्र कस्तूरबा जी से हुआ था।

गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर गुजरात मे ही हुई जहां से उन्होंने मिडल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने राजकोट मे हाईस्कूल मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 4 सितम्बर 1888 मे गांधी जी इंग्लैंड के लिए रवाना हुए। लंदन में गांधी जी ने लंदन वेजिटेरियन सोसायटी की सदस्यता ग्रहण की और इसके सम्मेलन में भी भाग लिया। सन 1888 से 1891 तक वकालत की पढ़ाई पूरी की ओर 1891 में गांधी जी इंग्लैंड से भारत वापस आए।

महात्मा गांधी पर निबंध (Mahatma Gandhi essay in hindi)

रूपरेखा:
  • प्रस्तावना
  • महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन
  • स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
  • गांधीजी के सिद्धांत: सत्य और अहिंसा
  • गांधीजी का सामाजिक दृष्टिकोण
  • भारत छोड़ो आंदोलन और अंतिम दिन
  • उपसंहार

प्रस्तावना:

महात्मा गांधी, जिन्हें बापू के नाम से भी जाना जाता है, बापू की उपाधि गांधी जी को राजवैद्य जीवराम कालिदास ने दी थी। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और प्रेरणा स्रोत थे। उन्होंने अपने जीवन में सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपनाकर न केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया, बल्कि समाज में भी परिवर्तन लाने का प्रयास किया। इस निबंध में महात्मा गांधी के जीवन, उनके कार्यों और उनके विचारों की चर्चा की जाएगी।

महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन:

मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर के दीवान थे और माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थीं। गांधीजी का प्रारंभिक जीवन साधारण था, लेकिन उनकी माता के धार्मिक संस्कारों ने उनके चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गांधीजी ने कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड की यात्रा की और वकालत की डिग्री प्राप्त की।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान:

गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ संघर्ष करते हुए सत्याग्रह की नींव रखी। 1915 में भारत लौटने के बाद, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी शुरू की। उन्होंने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, और भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया। उनकी अहिंसात्मक रणनीतियों ने ब्रिटिश शासन को कमजोर किया और अंततः 1947 में भारत को स्वतंत्रता दिलाई।

गांधीजी के सिद्धांत: सत्य और अहिंसा:

महात्मा गांधी के जीवन का आधार सत्य और अहिंसा था। उनका मानना था कि अहिंसा केवल शारीरिक हिंसा से बचने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें दूसरों के प्रति प्रेम, करुणा और सम्मान का भाव भी शामिल है। उनके अनुसार सत्य एक नैतिक शक्ति है, जो किसी भी अन्य शक्ति से अधिक प्रभावशाली होती है। गांधीजी का यह दृष्टिकोण स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी कार्यशैली का मुख्य हिस्सा रहा।

गांधीजी का सामाजिक दृष्टिकोण

गांधीजी केवल राजनीतिक नेता नहीं थे, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत, जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई। हरिजन आंदोलन के माध्यम से उन्होंने समाज के दबे-कुचले वर्गों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उनका विचार था कि किसी भी समाज की उन्नति तभी हो सकती है जब उसमें समानता और सद्भाव हो।

भारत छोड़ो आंदोलन और अंतिम दिन:

1942 में गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, जो ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अंतिम बड़ा आंदोलन था। इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार को भारतीय स्वतंत्रता को लेकर मजबूर कर दिया। 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या कर दी, जिससे पूरा राष्ट्र शोक में डूब गया।

उपसंहार:

महात्मा गांधी केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनके द्वारा दिए गए सत्य और अहिंसा के सिद्धांत आज भी मानवता के लिए प्रासंगिक हैं। उनका जीवन और विचार हमें यह सिखाते हैं कि किसी भी संघर्ष को शांति और धैर्य के साथ जीता जा सकता है। उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अमूल्य है, और वे हमेशा एक महान नेता के रूप में याद किए जाएंगे।

महात्मा गांधी द्वारा किए गए सत्याग्रह

महात्मा गांधी के जीवन और उनके नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसात्मक आंदोलन का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सत्याग्रह, जो गांधीजी के विचारों की मुख्यधारा का हिस्सा था, एक ऐसी विधि थी जो सत्य और अहिंसा के बल पर अन्याय का विरोध करने के लिए अपनाई गई थी। इस आंदोलन ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को दिशा दी, बल्कि विश्वभर में अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अहिंसात्मक संघर्ष का उदाहरण प्रस्तुत किया। यहाँ महात्मा गांधी द्वारा किए गए प्रमुख सत्याग्रहों का वर्णन है:

1.चंपारण सत्याग्रह (1917):

बिहार के चंपारण जिले में नील की खेती करने वाले किसानों के साथ अंग्रेजों द्वारा शोषण किया जा रहा था। किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर किया जाता था और उन्हें उनकी फसल का उचित मूल्य नहीं मिलता था। गांधीजी ने चंपारण पहुंचकर किसानों की समस्याओं को समझा और उनके पक्ष में सत्याग्रह का नेतृत्व किया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को किसानों की मांगें माननी पड़ीं और उन्हें न्याय मिला।

2.अहमदाबाद मिल श्रमिक सत्याग्रह (1918):

अहमदाबाद के कपड़ा मिल श्रमिकों को वेतन वृद्धि न मिलने और काम की खराब परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था। गांधीजी ने मजदूरों के समर्थन में सत्याग्रह शुरू किया और भूख हड़ताल की। अंततः मालिकों और श्रमिकों के बीच एक समझौता हुआ, जिससे श्रमिकों की मांगों को स्वीकार किया गया।

3.खेड़ा सत्याग्रह (1918):

गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों को अकाल के बावजूद भारी करों का भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा रहा था। गांधीजी ने किसानों के समर्थन में सत्याग्रह किया और किसानों को कर न चुकाने की सलाह दी। इस अहिंसात्मक आंदोलन के परिणामस्वरूप सरकार को किसानों की मांगें माननी पड़ीं और कर माफी दी गई।

4.असहयोग आंदोलन (1920-1922):

यह महात्मा गांधी द्वारा शुरू किया गया एक बड़ा राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह था। इस आंदोलन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के साथ किसी भी प्रकार के सहयोग को समाप्त करना था। गांधीजी ने लोगों से सरकारी नौकरियों, स्कूलों, अदालतों और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने की अपील की। हालांकि, चौरी-चौरा घटना के बाद, जिसमें हिंसा हुई, गांधीजी ने इस आंदोलन को स्थगित कर दिया।

5.दांडी मार्च (1930) और सविनय अवज्ञा आंदोलन:

ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर लगाए गए कर का विरोध करने के लिए गांधीजी ने 1930 में दांडी यात्रा का नेतृत्व किया। इस यात्रा में गांधीजी और उनके अनुयायियों ने साबरमती आश्रम से लेकर दांडी तक 240 मील की पैदल यात्रा की और समुद्र से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून का उल्लंघन किया। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रमुख हिस्सा था, जिसका उद्देश्य अन्यायपूर्ण कानूनों का शांतिपूर्ण तरीके से उल्लंघन करना था।

6.भारत छोड़ो आंदोलन (1942):

महात्मा गांधी द्वारा 1942 में शुरू किया गया यह अंतिम प्रमुख आंदोलन था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सरकार के भारत को समर्थन के लिए मजबूर करने के प्रयासों के खिलाफ गांधीजी ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा दिया। गांधीजी ने स्पष्ट किया कि अब समय आ गया है कि ब्रिटिश सरकार भारत को तत्काल आज़ादी दे। यह आंदोलन भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की दिशा में निर्णायक साबित हुआ।

निष्कर्ष:

महात्मा गांधी द्वारा किए गए सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मील का पत्थर साबित हुए। सत्य और अहिंसा के उनके सिद्धांतों ने भारतीय समाज को एकजुट किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष का मार्ग प्रशस्त किया। सत्याग्रह ने यह सिद्ध कर दिया कि अन्याय और अत्याचार के खिलाफ अहिंसात्मक प्रतिरोध भी उतना ही प्रभावी हो सकता है, जितना कि सशस्त्र संघर्ष। गांधीजी के सत्याग्रह आज भी दुनिया भर में संघर्षों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने की प्रेरणा देते हैं। अन्य जानकारी के लिए यहां क्लिक करें।

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